Saturday, 3 August 2019

शहर के विभिन्न क्षेत्रो में बाहरी मुस्लिम युवक हिन्दू बनकर रहकर हिन्दू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाकर कर रहे शोषण। ठीक इसी तरह से आज शहर के क्षेत्र में अरशद खान निवासी उधम सिंह नगर (उत्तराखंड) जो कि बरेली में साहिल अग्रवाल बनकर रह रहा जिसे मौके पर घर से पकड़ा जिसके बाद कागजात देखे तो साहिल अग्रवाल नाम का आधार कार्ड निकला।






23 अप्रैल मतदान के दिन मीडिया के समक्ष अपने विचार व्यक्त करते हुए मतदाता

#ट्विंकल_के_हत्यारों_को_फांसी_दो_फांसी_दो !! देश की नन्ही बिटिया ट्विंकल शर्मा के हत्यारों को फाँसी देने की मांग करते हुए व बिहारीपुर ढाल से कुतुबखाना तक कैंडल मार्च निकालकर श्रद्धांजलि दी।



आप सभी को श्रावण माह की हार्दिक शुभकामनाएं


बरेली शहर में बनखंडी नाथ मंदिर (जोगी नवादा) से निकलने सबसे बड़े कांवरियों के जत्थे का बड़ा बाजार स्थित नीम की चढ़ाई के पास पुष्पवर्षा कर स्वागत करते हुए बड़े भाई पार्षद सर्वेश रस्तोगी, गौरव सक्सेना, नीरज रस्तोगी, सोनू रस्तोगी, अजय कश्यप व अन्य................







श्रावण माह के द्वितीय सोमवार पर रामगंगा के निकट बड़े भाई आशीष सक्सेना द्वारा कांवरियो के लिए आयोजित भंडारे मे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ 'विभाग प्रचारक' आदरणीय आनंद जी भाई साहब व समस्त शिव भक्त..................... हर हर महादेव






Saturday, 20 April 2019

सेक्टर-77 में चुनाव सामग्री वितरण


सेक्टर-77 में बूथ अध्यक्षो को वोटर लिस्ट, पर्ची स्टेशनरी आदि सामग्री वितरण की साथ मे महानगर महामंत्री प्रभुदयाल लोधी जी, मंडल अध्यक्ष बृजेश मिश्रा, सेक्टर संयोजक गौरव सक्सेना, प्रदीप रुहेला, बूथ अध्यक्ष अमरनाथ तिवारी, अम्बरीष रस्तोगी, लवलीन कपूर, ज्ञान प्रकाश रस्तोगी, राहुल रस्तोगी, महेश रस्तोगी, स्वतंत्र टंडन, विनीत अरोरा, अनुराग भूषण, इंद्रजीत सिंह गांधी मौजूद रहे।






Wednesday, 17 April 2019

मतदाता जागरूकता अभियान

मतदाता जागरूकता अभियान के तहत हाफिज सिद्दीकी पंजाबियांन स्कूल में छात्र छात्राओ व स्कूल प्रबंधन द्वारा लोगो को शत प्रतिशत मतदान करने हेतु प्रेरित किया गया। जिसमें बड़े भाई पार्षद सर्वेश रस्तोगी, गौरव सक्सेना, सोनू रस्तोगी सहित क्षेत्र के सम्मानीय व जागरूक लोग उपस्थित रहे.............



Tuesday, 16 April 2019

आर.एस.एस पथ संचलन स्वागत

हिन्दू नव वर्ष के अवसर पर निकलने वाले आर.एस.एस के पथ संचलन का पुष्पवर्षा कर स्वागत करते हुए








भारतीय जनता पार्टी सेक्टर-77 कार्यालय उदघाटन


दिनांक 15-04-2019 को सेक्टर-77 में माननीय संतोष गंगवार जी के चुनाव कार्यालय का उदघाटन महापौर उमेश गौतम जी के द्वारा किया गया। उदघाटन के अवसर पर अपने सेक्टर के समस्त बूथ अध्यक्षो व सम्मानीय लोगों के साथ उपस्थित..........

गौरव सक्सेना
सेक्टर संयोजक
भारतीय जनता पार्टी
महानगर बरेली।

Facebook Page Link: https://www.facebook.com/Gauravsaxenaofficial/






Sunday, 14 April 2019

श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर पटना

http://adichitragupta.com

बिगत १० नवम्बर , २००७ को पटना में एक अदभुत घटना घटी | कायस्तों के अदि पुरुष , यमराज के दरबार में सृष्टि के समस्त प्राणियों के पाप- पुण्य का लेखा- जोखा रख ने बाले एबं प्राणियों दूयरा पृथ्बी पर किये गये कर्मो का न्याय संगत बिचार कर उनके भाबिस्य का निर्धारण कर ने बाले भगबान चित्रगुप्त लगभग ५० वर्ष के बाद पटना सिटी के दीवान मोहल्ला स्थित अपने प्राचीन मंदिर में बापस लौट आये |

भगबान यह पुनरअवतरन शायद संयोग मात्र नहीं है, अपितु; इसे संपूर्ण भारतवर्ष ही नहीं बल्कि; बिस्वभर के कायस्त समाज के नवजागरण एबं पुनरोत्थान की सुरुआत मानना ही ज्यादा युक्तिसंगत होगा |मंदिर में मूर्ति की पुनरस्थापना के बाद संपुर्ण कायस्त समाज में, बिशेष कर युबा बर्ग में जिस प्रकार से नवचेतना का संसार हुआ है, उसे देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि भगबान चित्रगुप्त अपने बंशजों ही आर्तनाद से द्रबित होकर पृथ्बी पर स्बयं एक बार पुनः प्रकट हो गये है | पटना के पुराने शहर (पटना शहर) में स्थित कायस्थों कि मशहुर पुरानी बस्ती दीवान मोहल्ला में स्तित श्री चित्रगुप्त अदि मंदिर, गंगा के सुरम्य दक्षीणी तट पर पटना को उत्तरी बिहार से जोड़ने बाले भारतवर्ष के सर्वाधिक लम्बे गंगा पुल (५.८ किलोमीटर) के गाय घाट स्थित दक्षीणी छोर से लगभग एक किलोमीटर पूरब में गंगा के किनारे स्थित है |मंदिर के बगल में ही सूफी संत नौजर शाह का मकबरा भी है, जिसकी बजह से इस घाट को नौजर घाट के नाम से भी जाना जाता है | नौजर घाट या चित्रगुप्त घाट एक अति प्राचीन घाट है |बिहार के अबकाश प्राप्त पुरातत्व निर्देसक डॉ. प्रकाश चरण प्रसाद के अनुसार गंगा का यह घाट प्रागौतिहासिक है | बिभिन्न रामायणों में उपलब्ध बर्णनों के अधर आधार पर यह कहा जाता है कि भगबान अपने अनुज लक्ष्मण एबं महर्षि बिस्वमित्र के साथ बक्सर में तड़का बध करने के उपरांत रजा जनक के दयरा भेजे गये स्वयंबर के आमंत्रण पर जब जानपुर कि और चले तो गंगा कि दक्षीणी तट के किनारे चलते - चलते पटना आये और इस ऐतिहासिक घाट से नाब दुयारा गंगा पर कर जनकपुर और बढे | बताते है कि तब तक आतंक का पर्याय बनी राक्षसी तड़का के संहारक के रूप में भगबान कि ख्याति फ़ैल चिकि थी और जब उन्होंने चित्रगुप्त घाट से गंगा पर कर चित्रसेंपुर नामक गाँव में पैर रखा, तब वहाँ के ग्रामीणों ने अबध के पराक्रमी राजकुमारों एबं महर्षि बिस्वमित्र कि आरती उतारी एबं एह शिला पर भगबान राम के चरण चिन्ह प्राप्त कर उसे मंदिर के रूप में स्तापित किया, जिसकी पूजा बहाँ आज भी होती है |वैसे भी, इच्छबाकु बंश के सुर्यबंशी राजाओं के पदचिन्ह लेकर उसकी पूजा करने कि परम्परा बैदिक काल से चली आ रही है |बताते हैं कि बाद में गंगा पार कर भगबान बुद्ध ने भी इसी ऐतिहासिक चित्रगुप्त घाट से पाटलिपुत्र में प्रबेश किया और बोध गया में जाकर परम ज्ञान कि प्राप्ति कि तथा पाटलिपुत्र को ही केन्द्र बनाकर पुरे बिश्ब में बौद्ध दर्शन प्राचर - प्रसार किया |ईसा के ४०० वर्ष पूर्ब मगध कि राजधानी पाटलिपुत्र पार नन्दबंस का शासन था जिसके महामात्य शतक दास उर्फ़ शटकारी थे जो बाद में मुद्राराक्षस के नाम से जाने गए | मुद्राराक्षस कायस्त जाती के थे एबं उनकी ख्याति भारतीय इतिहास में एक अत्यन्त कुसल एबं दक्ष प्रसासक, महहन न्यायबिद, प्रकांड बिदुआन एबं निष्ठाबान कर्मकांडी के रूप में बिश्बबिख्यात है | महामात्य मुद्राराक्षस कि चर्चा इतिहाश के अतिरिक्त पौराणिक ग्रंथोंमे भी बिषाद रूप से अति है |महामात्य मुद्राराक्षस ने नन्दबंस कि तिन पुश्तों के राजाओं के साथ प्रधान मंत्री कि कार्य किया और लगभग ५० वर्ष तक नन्दबंस के महामात्य के रूप में मगध साम्राज्य पार शासन किया | ईसा के ३६४ वर्ष पूर्ब जब चन्द्र गुप्त मौर्य ने महापदमनन्द को पराजित कर मौर्यबंश कि स्तापन कि, तब अपने गुरु कूटनीतिज्ञं कौटिल्य (पंडित चाणक्य) कि आज्ञं से चन्द्रगुप्त मौर्य ने महापदमनन्द को पराजित नन्दबंस के महामात्य मुद्राराक्षसको ही सन्मान पुर्बक महामात्य नियुक्त किया और मुद्राराक्षस ने जीबन - पर्यन्त मौयबंस का शासन चलाया |यह बिश्ब के इतिहास में एक मात्र उदहारण है कि सक्षम प्रशासन के गुणों का कायल हो कर किसी बिजाई राजा ने किसी पराजित राजा के महामात्य को अपने साम्राज्य कि बागडोर सौंप दी हो | मुद्राराक्षस कि मृत्यु ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार ८८ वर्ष कि आयु में हुई थी और अपने जीबन के अंत तक उन्होंने महामात्य के रूप में राजकीय कार्य किये थे |चित्रगुप्त मौर्य ने मुद्राराक्षस को महामात्य कैसे बनाया , इसका भी एक अत्यन्त ही दिलसस्प प्रसंग प्रचलित हो | कहते हैं कि महापदमनन्द के पराजय के बाद चित्रगुप्त ने ४० दिनों के राजकीय जस्न का ऐलान कर दिया था | देस के बिभिन्न भागों से नर्तकियाँ बुलाई गयी थी जिससे मशहुर बसरे (बर्तमान में इराक ) कि हरें (सुन्दर नर्तकियाँ ) भी सामिल थीं | ४० दिनों का जशन चलता रहा | जब सम्राट चित्रगुप्त कि खुमारी टूटी , तब उसने देखा कि उसने गुरु कौटिल्य (चाणक्य) कही दिख नहीं रहे | उसने दरबारियों से पुचा , "गुरूजी कहां हैं ?"उतर मिला कि बे तो राज्याअभिषेक के दुसरे ही दिन गंगा के तट परचले गये और पर्ण कुटी (कुसा पास के तिनकों बनाई झोपडी) बनाकर गंगा तट पर रह रहे हैं | चन्द्रगुप्त ने सोचा कि गुरु जी नाराज हो गये | अतः तत्काल घोड़े कि पीठ पर सबार हो कर गंगा किनारे गया और चाणक्य कि पूर्ण कुटी ढुंढ कर बहाँ पहंचा साष्टांग प्रणाम करने के बाद उसने कहा - " गुरूजी क्षमा कीजियेगा | में राजकीय जशन में इतना डूब गया कि आप का ध्यान ही नही रहा | मुझे आपने किये पर आपर दुःख और ग्लानी हो रही है |में आप से करबदु प्रार्थना करता हूँ कि मुझे माफ़ कर दीजिये और कृपया राज्भाबन बापस चलकर महामात्य का कार्यभार संभालें |"चाणक्य ने मुस्कराते हुए चन्द्रगुप्त को गले लगाया और कहा -"बत्य मैं तुमसे कतई नाराज नहीं हूँ |दुष्ट महापदमनन्द के नाश के बाद यह स्वबभिक ही था कि तुम राजकीय जशन आयोजित करते | नन्दबंस के नस के बाद मेरी प्रतिज्ञं तो पूरी हो गये है |अब मैंने अपने चोटी भी बांध ली है और गंगा के किनारे पूर्ण कुटी बनाकर रहने लगा हूँ, जो कि चिन्तन, मनन और साधना के लिये अति उपयुक्त स्तान है |अतः अब तो जीबन पर्यन्त यही रहने कि इच्छा है |" जब चन्द्रगुप्त ने बहुत ही अनुनय बिनय किया तब चाणक्य ने कहा -" है सम्राट चन्द्रगुप्त ! में एक कुटिल ब्राहमण हूँ | महापदमनन्द दयरा किये गये अपने अपमान के प्रतिशोध में मैं अपनी कूटनीति से तुम्हे मगध का चक्रबर्ती सम्राट तो बना सहता हूँ किन्तु प्रशासन संभाने और चलने कि क्षमता मुझमे नहीं हैं |"चन्द्रगुप्त ने कहा -" है गुरुदेव अपने तो मुझे मात्र अस्त्र शस्त्र चलाने और घुडसबारी के अलाबे कुछ सिखाया ही नहीं | मैं प्रशासन कैसे चलाऊंगा ?अब आप ही मार्ग दर्सन कीजिये |"तब चाणक्य ने कहा, "प्रशासन कार्य कयोस्थों का काम हैं किसी योग्य कयोस्त को ढुंढ कर ले आओ और महामात्य बनादो |कयोस्थों के रक्त में ही प्रशासन के गुण होते है |बे ही दक्षता और ईमानदारी से प्रशासन चला सकता हैं |"इसपर चन्द्रगुप्त ने कहा, " मैं ढुंढ तो दू , लेकिन, तुमे पहले बचन देना पडेगा कि तुम मेरी बात को मानोगे |" चन्द्रगुप्त ने कहा, "भगबान! आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं कि मैं आप कि आज्ञा कि अबहेलना कर दुंगा |मेरा तो तन मन और धन सब आप ही का है | तब चाणक्य ने कहा कि " है बत्स महापदम नन्द कि महामात्य शाटक दास यानि शत्कारी अदभुत क्षमताओं का स्बमी, परमगुणी, बिदुन, चतुर, कुशल प्रसासक तथा मायाबी राक्षसों कि जैसी कार्य क्षमता का धनि है |इसी लिये में उसे राक्षस कहकर पुकारता हूँ | राक्षस अभी तुम्हारे सैनिको से छिपकर कहीं जंगलों में भटक रहा होगा |उसे क्षमा दान कर दो और स-सम्मान लाकर मगध की साम्राज्य चन्द्रगुप्त की बागडोर सौंप दो |" मुद्राराक्षस का नाम सुनते ही सम्राट चन्द्रगुप्त की भौंहें तन गई और एक झटके में ही उसने म्यान से तलबार बाहर निकालते हुये कहा - "मुद्राराक्षस! कहां है बह मैंने तो उसे जिबित या मृत प्रस्तुत करने बाले को १००० स्बर्ण मुद्राओं का ईनाम घोषित कर रखा हैं |मैं उसे महामात्य कैसे बना सकता हूँ ?"चाणक्य ने हंसते हुये कहा- "हे बत्समें तुम्हरी भाबनाओं से परिचित था | इसीलिए पहले बचन ले लिया था | उसके बाद जब चन्द्रगुप्त ने अपनी गलती का एहसास कर मुद्राराक्षस को जीबन दान देकर महामात्य के पद पर नियुक्त करने का निर्णय ले लिया | तब चाणक्य ने चन्द्रगुप्त से दो बचन और माँग लिये | पहला यह की चन्द्रगुप्त मात्र नितिगत निर्णय लेगा और प्रशासन कार्य में कोई दिन प्रतिदिन की दखलन्दाजी नहीं करेगा और सत्कारी यानि राक्षस को मात्र यह बतायेगा की उसका अंतिम लक्ष्य क्या है | लक्ष्य की प्राप्ति कैसे करेगा उसका निर्णय बह अपने महामात्य मुद्राराक्षस के बिबेक पर छोड़ देगा तभी प्रशासन सुचारू रूप से चल सकेगा |